पुलिस या सर्वशक्तिमान...

पुलिस या सर्वशक्तिमान....
मैं पुलिस की सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर बात करूंगा ।
कितनी कड़ी मेहनत करने के बाद एक सफलता मिलती हैं , उस सफलता के पीछे तमाम कोशिशें ,संघर्ष ,असफलता और निराशा छिपी होती है।
पुलिस आज समाज का वो हिस्सा बन चुकी हैं जिसके बिना कोई भी कार्य पूर्ण होना सम्भव हो , कहने को तो सभी विभाग अलग हैं लेकिन पुलिस विभाग का कार्य सभी विभागों के कार्य में भागीदारी निभाता हैं ।


खैर सभी व्यक्तियों का नजरिया और सोचने का तरीका अलग -अलग होता हैं । आज हालात ये हो चुके हैं पुलिस की जरूरत सबको हैं लेकिन पसन्द किसी को नही ।
आज समाज में लोग पुलिस के प्रति दोनों तरह के सकारात्मक और नकारात्मक निगाहों से देखते हैं ,खैर देखना भी चाहिए । सबसे बड़ा सवाल ये हैं कि भ्रष्टाचार या रिश्वत की बात आती हैं तो हम अपने आप को कहाँ खड़ा पाते हैं ,देश में भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो सब करते हैं लेकिन जब अपना स्वार्थ निकल रहा हो वहाँ रिश्वत देने से पीछे नही हटते ,ये दोहरा रवैया क्यूँ ?
कथनी और करनी में अंतर क्यूँ ?
दोष सिर्फ पुलिस को ही जाता हैं ।
पुलिस का कार्य सदैव समाज हित में होता हैं ,एक पुलिस वाले पर समाज और गृहस्थी की जिम्मेदारी होती हैं मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ता हैं और सबसे ज्यादा तो उसे अपने ही विभाग के सामने लाचार होना पड़ता हैं ,वास्तव में हम कितने ही दावे करते हो लेकिन स्थिति अभी सुधरी नही हैं समस्याएं ज्यों की त्यों ही हैं ।
कहने को तो पुलिस को बहुत शक्तियां दे रखी हैं शक्तिमान बना रखा हैं लेकिन धरातल पर स्थिति इसके ठीक विपरीत हैं ।
आज के समय में ईमानदार सिर्फ और सिर्फ वो हैं जिसे बेईमानी करने का मौका न मिला हो अन्यथा सब ईमानदारी का ठप्पा लगाये घूमते हैं ।
हमेशा पुलिस की ईमानदारी पर ही शक क्यूँ उठाये जाते हैं ,
बात ड्यूटी और देश सेवा की जाये तो आपने भी महिला सिपाहियों को अपने मासूम बच्चों के पालन पोषण करने के साथ-साथ ड्यूटी करते हुए देखा होगा । क्या सिर्फ ये एक दिखावा हैं ,नही ये एक सच्चाई हैं । बिना कुछ खाये पिये सिर्फ और सिर्फ ड्यूटी करना ही प्रथमिकता हैं ।
मैंने देखा हैं उन पुलिस वाले भाइयों को जिन्होंने अपनी कमाई में से भी उन गरीबो का पेट भरा हैं जो रात को रोज़ भूखे सो जाते हैं , सर्दी की रातों में बिना कम्बल के नींद आना बहुत ही मुश्किल हैं लेकिन मैंने देखा है उन पुलिस वाले भाइयों को भी जो रात को उन्हें कम्बल उढ़ाते हैं । 
सुनने और देखने में कितना अच्छा लगता हैं वो शब्द जो सभी पुलिसकर्मी चाहते हैं "स्मार्ट पुलिस" । मुझे पता हैं कुछ भाइयों को ये शब्द पसन्द न आये क्योंकि ये शब्द सुनते -सुनते थक गए होंगे ,सही ही तो हैं आखिर ये शब्द समय -समय पर सुनाई देता हैं और फिर जादू की तरह गायब हो जाता हैं ।
हम सब ये आस करते हैं कब बदलेंगे पुलिस वालों के दिन ,क्या वो दिन आएगा कभी ?
ह्रदय में अब भी बहुत से शब्द हैं पर मैं "निःशब्द" हूँ...

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