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नींद के दरवाजे

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 और रात के अंधियारे के साथ घर के एक  कोने में छूट जाते हैं, हमारे सपने। रात ही है जो हम जैसों को रो लेने की सहूलियत देती है और ख़ामोशी बहुत ही बेबाकी से बांध लेती है मन की चीखों को।  दुनिया जब सपनों में ग़ुम होती है तो छूट जाते हैं हम जैसे कुछ, नींद के दरवाजे पर... हक़ीक़त के खंरोचे हुए। जिन्हे ख़्वाब मयस्सर नहीं होते, हक़ीक़त सोने नहीं देती। हम अपने घरों के नालायक, घरों के कोनों में टूटे-बिखरे-भूले सपनों को जोड़ते, समेटते दिन निकलते जाते हैं... खाली कमरों में हजारों 'काश' के सिवा कुछ नहीं रह जाता, रह जाती है तो हमारे  सपनों की चादर और उस पर ढके ख्याब जो हमेशा सवाल करते रहेंगे.... ऐसे सवाल जिनका हल हर किसी पर नहीं होगा और जिसपर होगा वो एकांत में यहीं सोच रहा होगा आखिर ये नींद के दरवाजे बंद क्यों नही होते..??

Professor Shyam Sundar Jyani of Rajasthan made the Thar desert land green

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Jyani comes from a farming family in a small village in Ganganagar, 20 kilometers from the India-Pakistan border, deep into the Thar desert in Rajasthan. Now an associate professor, he has always been aware of the challenges a desert ecology presents. Rajasthan is the largest and most arid state in India. Jyani has been working towards restoring and preserving the desert ecosystem and combating desertification through a holistic effort of plantation and sustainable living He has been leading these efforts in Rajasthan since the year 2003 and has planted more than 2.5 million trees to date, most of it funded himself, while plantation help comes from thousands of villagers who have joined his grassroots campaigns to green Rajasthan. The survival rate of these plants is more than 95 percent, says Jyani. A resident of Bikaner, where he is an associate professor of sociology in Government Dungar College, most of Jyani’s work has been focused in the western part of Rajasthan where the desert...

सिनौली की सभ्यता

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 भारत में चीजें कहाँ से आईं? प्राचीन इतिहास में मध्य एशिया से लोग आए। उसके बाद पश्चिम एशिया से आए। उन्हीं लोगों में से कोई धातु लेकर आ गया, किसी ने हमें घोड़ा दिया, तो किसी ने हमें गाय के दुग्ध के बारे में बताया। फिर मुग़ल आए। सबसे उन्नत सभ्यताएँ तो मेसोपोटामिया की थीं, माया सभ्यता थी, मिस्र की थी।युद्ध कला के बारे में हमने यही से सीखा। सच में देखा जाए तो हम उनके सामने कुछ नहीं थे। आर्य बाहर से आए और उन्होंने यहाँ के लोगों को गुलाम बना कर आदमी होना सिखाया।  सिनौली में खुदाई आज से 3 वर्ष पहले हुई लेकिन हमें उसके बारे में अब पता चल रहा है, वो भी डिस्कवरी प्लस की डॉक्यूमेंट्री "Secrets of Sinauli" से। यह 55 मिनट आपके लिए लाजबाब होने वाले है जो इस डॉक्यूमेंट्री से जोड़े रखते है तब भी जब आपको इतिहास में बिलकुल भी रुचि नहीं है। मनोज वाजपेयी का नैरेशन शानदार है।जिसमें खासकर उन्ही आवाज...  विशेषज्ञों से विस्तृत बातचीत की गई है उन्होंने कम समय में सम्पूर्ण जानकारी दर्शकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है और ग्राफिक्स की मदद से 5000 वर्ष पूर्व की उस सभ्यता को लगभग उकेर दिया गया है। सबसे ...

Karma and samsara

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Karma translates literally as action, work, or deed, and can be described as the "moral law of cause and effect". According to the Upanishads an individual, known as the jiva-atma, develops sanskaras (impressions) from actions, whether physical or mental. The linga sharira, a body more subtle than the physical one but less subtle than the soul, retains impressions, carrying them over into the next life, establishing a unique trajectory for the individual, Thus, the concept of a universal, neutral, and never-failing karma intrinsically relates to reincarnation as well as to one's personality, characteristics, and family. Karma binds together the notions of free will and destiny. This cycle of action, reaction, birth, death and rebirth is a continuum called samsara. The notion of reincarnation and karma is a strong premise in Hindu thought. The Bhagavad Gita states : Samsara provides ephemeral pleasures, which lead people to desire rebirth so as to enjoy the p...

असंम्भव कुछ भी नही

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असम्भव इस दुनिया कुछ नही होता मेरे दोस्तों । असम्भव सिर्फ़ दीवारों या कोरे कागजों पर लिखा एक शब्द हैं,जिसका सही मायने में कोई अर्थ नही हैं। असम्भव हमारी सोच और मानसिकता पर निर्भर करता हैं । ज़िंदगी में जो चाहो वो हासिल कर लो,बस इतना ख्याल रखना कभी मत सोचिये की आत्मा रूपी शरीर के लिए कुछ असम्भव है और वो लोग जो अपने दिमाग को नही बदल सकते वह कुछ भी नही कर सकते ।  जब तक नही होता तब तक लगता हैं  हो नही सकता, मनुष्य इसी कड़ी में आगे बढ़ता जाता हैं । 'Lord Kelvin' नाम के एक बहुत बड़े वैज्ञानिक कहते थे सिर्फ़ पक्षी उड़ान भर सकता हैं । हवा से भारी मशीन का उड़ान भरने असम्भव हैं,हवा से कुछ भी भारी हो वो उड़ नही सकता क्योंकि ग्रेविटी उसे गिरा देगी । 'It is impossible' Write बंधुओं ने इसे पूर्ण तरीके से नकार दिया और उस सिद्धान्त को साइकिल के स्पेयर पार्ट्स से असम्भव को सम्भव कर दिखाया ।16 साल लगे उन्हें इस निर्माण में। भँवरे के बारे में यही बात कही जाता थी कि भँवरा वायु के सिद्धांत के कारण जीवन में कभी उड़ नही सकता। क्योंकि उसके पंख उसके शरीर से हल्के हैं । भँवरे को ये बात नही पता थ...

पुलिस या सर्वशक्तिमान...

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पुलिस या सर्वशक्तिमान.... मैं पुलिस की सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर बात करूंगा । कितनी कड़ी मेहनत करने के बाद एक सफलता मिलती हैं , उस सफलता के पीछे तमाम कोशिशें ,संघर्ष ,असफलता और निराशा छिपी होती है। पुलिस आज समाज का वो हिस्सा बन चुकी हैं जिसके बिना कोई भी कार्य पूर्ण होना सम्भव हो , कहने को तो सभी विभाग अलग हैं लेकिन पुलिस विभाग का कार्य सभी विभागों के कार्य में भागीदारी निभाता हैं । खैर सभी व्यक्तियों का नजरिया और सोचने का तरीका अलग -अलग होता हैं । आज हालात ये हो चुके हैं पुलिस की जरूरत सबको हैं लेकिन पसन्द किसी को नही । आज समाज में लोग पुलिस के प्रति दोनों तरह के सकारात्मक और नकारात्मक निगाहों से देखते हैं ,खैर देखना भी चाहिए । सबसे बड़ा सवाल ये हैं कि भ्रष्टाचार या रिश्वत की बात आती हैं तो हम अपने आप को कहाँ खड़ा पाते हैं ,देश में भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो सब करते हैं लेकिन जब अपना स्वार्थ निकल रहा हो वहाँ रिश्वत देने से पीछे नही हटते ,ये दोहरा रवैया क्यूँ ? कथनी और करनी में अंतर क्यूँ ? दोष सिर्फ पुलिस को ही जाता हैं । पुलिस का कार्य सदैव समाज हित में होता ह...

लो भाई खत्म हुआ चुनावी मेला....

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लो भाई खत्म हुआ चुनावी मेला...  उठ गई चुनाव में लगी राजनीतिक दुकाने और अपने पीछे फिर वही पहले की तरह कही खुशी तो कही गम दे गई...लेकिन दुःख तो सबसे ज्यादा उन्हें हैं जो रोज़ पूड़ी और सब्जी का परम आनंद नेताओ की राजनीतिक दुकानों से खा रहे थे...मैंने भी कहा खा लो खा कुछ दिन और सही फिर ये नेता तुम से इन सब का ब्याज सहित हिसाब चुकता कर लेंगे ! फिर कहते रहना इसने कुछ नही किया उसने कुछ नही किया ...पर क्या फर्क पड़ता हैं लोकतांत्रिक देश हैं भाई जिसका मन करेगा वो वही वोट डालेगा। "भाइयों मज़ा तो जब आया जब मैंने अपने ही गांव के एक व्यक्ति से पूछा कि चाचा जी हमारे क्षेत्र से कौन - कौन नेता चुनाव में खड़े हुये हैं तो वो मुझसे बोले नाम न पतो मोहे ,नाम में काह रखो हैं ,वोट ही तो डारनी हैं सो डाराएगें । ये लो भाई ये सोच हैं 21 वीं सदी के लोगो की । आप क्या उम्मीद कर सकते हैं विकास , शिक्षा ,पानी ,सड़क ,चिकित्सा जैसे मुद्दों को लेकर चुनाव में कहने की । नेताओं ने खुब सम्मान दिया खूब इज्जत की अब देखना ये हैं कि कितने वादों पर नेता खरे उतरते हैं  टकटकी लगा कर देखते रहिये जजमान अब क्या होगा ...