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Showing posts from 2018

पुलिस या सर्वशक्तिमान...

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पुलिस या सर्वशक्तिमान.... मैं पुलिस की सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर बात करूंगा । कितनी कड़ी मेहनत करने के बाद एक सफलता मिलती हैं , उस सफलता के पीछे तमाम कोशिशें ,संघर्ष ,असफलता और निराशा छिपी होती है। पुलिस आज समाज का वो हिस्सा बन चुकी हैं जिसके बिना कोई भी कार्य पूर्ण होना सम्भव हो , कहने को तो सभी विभाग अलग हैं लेकिन पुलिस विभाग का कार्य सभी विभागों के कार्य में भागीदारी निभाता हैं । खैर सभी व्यक्तियों का नजरिया और सोचने का तरीका अलग -अलग होता हैं । आज हालात ये हो चुके हैं पुलिस की जरूरत सबको हैं लेकिन पसन्द किसी को नही । आज समाज में लोग पुलिस के प्रति दोनों तरह के सकारात्मक और नकारात्मक निगाहों से देखते हैं ,खैर देखना भी चाहिए । सबसे बड़ा सवाल ये हैं कि भ्रष्टाचार या रिश्वत की बात आती हैं तो हम अपने आप को कहाँ खड़ा पाते हैं ,देश में भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो सब करते हैं लेकिन जब अपना स्वार्थ निकल रहा हो वहाँ रिश्वत देने से पीछे नही हटते ,ये दोहरा रवैया क्यूँ ? कथनी और करनी में अंतर क्यूँ ? दोष सिर्फ पुलिस को ही जाता हैं । पुलिस का कार्य सदैव समाज हित में होता ह...

लो भाई खत्म हुआ चुनावी मेला....

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लो भाई खत्म हुआ चुनावी मेला...  उठ गई चुनाव में लगी राजनीतिक दुकाने और अपने पीछे फिर वही पहले की तरह कही खुशी तो कही गम दे गई...लेकिन दुःख तो सबसे ज्यादा उन्हें हैं जो रोज़ पूड़ी और सब्जी का परम आनंद नेताओ की राजनीतिक दुकानों से खा रहे थे...मैंने भी कहा खा लो खा कुछ दिन और सही फिर ये नेता तुम से इन सब का ब्याज सहित हिसाब चुकता कर लेंगे ! फिर कहते रहना इसने कुछ नही किया उसने कुछ नही किया ...पर क्या फर्क पड़ता हैं लोकतांत्रिक देश हैं भाई जिसका मन करेगा वो वही वोट डालेगा। "भाइयों मज़ा तो जब आया जब मैंने अपने ही गांव के एक व्यक्ति से पूछा कि चाचा जी हमारे क्षेत्र से कौन - कौन नेता चुनाव में खड़े हुये हैं तो वो मुझसे बोले नाम न पतो मोहे ,नाम में काह रखो हैं ,वोट ही तो डारनी हैं सो डाराएगें । ये लो भाई ये सोच हैं 21 वीं सदी के लोगो की । आप क्या उम्मीद कर सकते हैं विकास , शिक्षा ,पानी ,सड़क ,चिकित्सा जैसे मुद्दों को लेकर चुनाव में कहने की । नेताओं ने खुब सम्मान दिया खूब इज्जत की अब देखना ये हैं कि कितने वादों पर नेता खरे उतरते हैं  टकटकी लगा कर देखते रहिये जजमान अब क्या होगा ...

"चुनावों की सर्दियाँ"

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जैसे ही सर्दियों की सुदबुदहाट शुरू वैसे -वैसे हमारे क्षेत्र पर चुनावी रंग चढ़ने लगा , गली -गली नेताओं की कतार लगने लगी ,उनके पीछे नारो का उदघोष करते लोग तेज गति से चले जा रहे थे । अब लगता था नेताजी अपने घोसलों से निकल कर क्षेत्र की सैर पर निकल आये हैं । हाँ जी मेरा गाँव भरतपुर लोकसभा की डीग- कुम्हेर विधानसभा में पड़ता हैं । इस विधानसभा में तकरीबन 205000 वोट हैं , जातिगत आंकड़े भी हैं लेकिन बताऊंगा नही कुछ लोगो को बुरा लगेगा । क्या कहें जनाब ये चुनाव भी न बड़े मजे देते हैं हर चुनाव में नये - नये नारे , नये - नये वादे । एक दिन शाम के समय चौपाल पर बैठे मेरे बुजुर्ग हुक्का के साथ -साथ चुनावी बातों का भी आनन्द ले रहे थे और  जीत -हार के आंकड़ों को अपने स्तर से सर्वे कर आंकलन लगा रहे थे , मुझसे रहा नही गया मैंने पूछ ही लिया " दादाजी किस आधार या मुद्दे को देखते  हुए वोट करोगे" तो तपाक से बोले "बेटा यहाँ न चले मुद्दा यहाँ तो आदमी देख्खे वोट दें " दादाजी आगे बोले " कछु लोगनके तो मज़े आ गए फ्री में रोटी मिलिंगी" सभी बुजुर्ग मेरी तरफ मुँह करके पूछने लगे ...

हाँ मेरे गाँव में खेल मैदान हैं

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मेरा ऐतिहासिक गांव सिनसिनी , मेरा जन्म इसी गांव की मिट्टी में हुआ और यही पर मेरा लालन - पालन हुआ । बचपन से ही मुझे अपने गांव के राजा महाराजों के बारे में बताया जाता जिसे सुनकर मुझे गर्व होता था । मुझे गांव के खेल मैदान के बारे में भी बताया जाता ।बाद में जब मैं उसी मैदान में खेलकूद कर बड़ा हुआ तो उस मैदान के बारे में कुछ बातें अपने गांव के बुजुर्गों से सुनी , बुजुर्ग लोगो ने बताया कि मैदान के लिए 25 बीघा जमीन गांव के ही लम्बरदार श्री छिद्दा सिंह जी ने समाज को दान की । आज ये मैदान शायद 25 बीघा से बहुत कम रह गया हैं इसका एक कारण किसी की इस तरफ नजर ही नही गयी। आज तक इस मैदान में सिर्फ चार दिवारी के अलावा नाम मात्र का भी विकास नही हुआ ।उल्टा उस मैदान में एक बहुत बड़ा गड्डा जिसका आकार एक छोटे तालाब जैसा जितना हैं हो गया हैं ।या यूं कहूँ की समाजकंटको की बजह से हुआ तो थो इसमें कुछ गलत नही होगा ।ये गड्डा मेरे उन नौजवान को रोज़ चिढ़ाता हैं जो उसमें दिन रात मेहनत करते हैं, खेलते हैं । इस गड्ढे को मिटाने के लिए मेरे द्वारा एक पहल की गई, मैं अपने साथ 10 -12 भाइयो को लेकर अटल सेवा केंद्र गया जहाँ में ...