"चुनावों की सर्दियाँ"



जैसे ही सर्दियों की सुदबुदहाट शुरू वैसे -वैसे हमारे क्षेत्र पर चुनावी रंग चढ़ने लगा , गली -गली नेताओं की कतार लगने लगी ,उनके पीछे नारो का उदघोष करते लोग तेज गति से चले जा रहे थे । अब लगता था नेताजी अपने घोसलों से निकल कर क्षेत्र की सैर पर निकल आये हैं ।
हाँ जी मेरा गाँव भरतपुर लोकसभा की डीग- कुम्हेर विधानसभा में पड़ता हैं । इस विधानसभा में तकरीबन 205000 वोट हैं , जातिगत आंकड़े भी हैं लेकिन बताऊंगा नही कुछ लोगो को बुरा लगेगा ।
क्या कहें जनाब ये चुनाव भी न बड़े मजे देते हैं हर चुनाव में नये - नये नारे , नये - नये वादे ।

एक दिन शाम के समय चौपाल पर बैठे मेरे बुजुर्ग हुक्का के साथ -साथ चुनावी बातों का भी आनन्द ले रहे थे और  जीत -हार के आंकड़ों को अपने स्तर से सर्वे कर आंकलन लगा रहे थे , मुझसे रहा नही गया मैंने पूछ ही लिया " दादाजी किस आधार या मुद्दे को देखते  हुए वोट करोगे" तो तपाक से बोले "बेटा यहाँ न चले मुद्दा यहाँ तो आदमी देख्खे वोट दें "
दादाजी आगे बोले " कछु लोगनके तो मज़े आ गए फ्री में रोटी मिलिंगी"
सभी बुजुर्ग मेरी तरफ मुँह करके पूछने लगे " लाला यूँ बता ई रोज़ अखबारन में आ रही कि वोट डालवे वाई मशीनन में गड़बड़ी हैं जावे का ई सही बात हैं"
मैंने कहा "दादाजी चुनावो में पहले गड़बड़ी की खबर आती थी कि आज आती हैं"
इतने में एक बुजुर्ग बोले"सही कहरहो लाला पहले हल्ला ज्यादा मचेओ"

वैसे सही भी कहा उन्होंने चुनाव में मुद्दा कोई मायने नही रखता सिर्फ राजनीति करनी आनी चाहिए विकास गया भाड़ में ।
अब नए - नए प्रत्याशी और निकल कर आ रहे हैं वोट काटने के लिये या पैसा कमाने के लिए ,लेकिन जोर ऐसे लगा रहे हैं जैसे चुनाव तो वो जीत ही गए वैसे प्रयास करना बुरी बात नही लेकिन उद्देश्य ठीक होना चाहिए ।

वैसे प्रत्याशियों की शक्ल इस समय देखने - दिखाने लायक होती हैं छोटा हो या बड़ा सब के पांव छूने से मतलब ,भाई वोट जो लेनी हैं ।

सिर्फ और सिर्फ चुनावी समय में जब गाँव में कोई घटना घटित हो जाती हैं तब आते हैं सरकारी  नुमाइंदे ,घोषणाओं का दौर , गांव की सड़कों पर सरपट दौड़ती गाड़ियाँ ,माइको की आवाज , पोस्टरों से पटे शहर - गाँव, चुनावी माहौल का अंदेशा लगाने को मजबूर कर देती हैं ।
अब नेताओं के नित रोज़ नए वादे , झूठी दिलासा , लालसा , किसानो का कर्ज माफ , किसानों का झूठा सम्मान ये सब चुनाव के समय देखने को मिल ही जाता हैं ।
वो अन्नदाता उसी झूठे वादों के सपनों में खो कर पाँच साल यूँ ही निकाल देता हैं और पुनः वो ही दौर शुरू हो जाता हैं ।
चुनावो के समय जो नेता जो जितनी अच्छी नोटंकी कर लेता हैं उतना ही फायदा होता हैं उसे ।
सब नेताओं को किसानों की बहुत याद आएगी क्योंकि वोट जो लेनी हैं और इससे भोला इंसान कहाँ मिलता हैं , आखिर राजनीति भी तो किसान के सीने पे पैर रखकर करनी हैं ।
ह्रदय में अभी भी बहुत सी बातें हैं लेकिन "निःशब्द" हूँ मैं ।
लेखक- "ऊधम सिंह"


Comments

  1. Dil ki baat kahdi bhai.
    Aajkal har ek gaon me yahi kissa hai

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  2. This comment has been removed by the author.

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